INFORMATION ABOUT RAKSHABANDHAN IN HINDI,RAKSHABANDHAN HISTRY,RAKSHABANSHAN MEANING,WHO STARTED RAKSHABANDHAN
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INFORMATION ABOUT RAKSHABANDHAN IN HINDI,RAKSHABANDHAN HISTRY,RAKSHABANSHAN MEANING,WHO STARTED RAKSHABANDHAN
रक्षा बंधन की सम्पुर्ण जानकारी....
रक्षा बंधन का
त्योहार भारतीय त्योहारों में से एक प्राचीन त्योहार है। रक्षा-बंधन यानि – रक्षा
का बंधन, एक ऐसा रक्षा सूत्र जो भाई को सभी संकटों से
दूर रखता है। यह त्योहार भाई-बहन के बीच स्नेह और पवित्र रिश्ते का प्रतिक है।
रक्षाबंधन एक सामाजिक, पौराणिक, धार्मिक और
ऐतिहासिक भावना के धागे से बना एक ऐसा पावन बंधन है, जिसे रक्षाबंधन
के नाम से केवल भारत में ही नहीं बल्कि नेपाल और मॉरेशिस में भी बहुत धूम-धाम से
मनाया जाता है। राखी के त्योहार को हम संपूर्ण भारतवर्ष में सदियों से मनाते चले आ
रहे हैं। आजकल इस त्योहार पर बहनें अपने भाई के घर राखी और मिठाइयाँ ले जाती हैं।
भाई राखी बाँधने के पश्चात् अपनी बहन को दक्षिणा स्वरूप रुपए देते हैं या कुछ
उपहार देते हैं।
रक्षा-बंधन कब मनाया जाता है
रक्षाबन्धन एक
हिन्दू व जैन त्योहार है, जो प्रतिवर्ष श्रावण मास (जुलाई-अगस्त)
की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे
श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई
एक पवित्र धागा यानि राखी बाँधती है और उनके अच्छे स्वास्थ्य और लम्बे जीवन की कामना
करती है। वहीं दूसरी तरफ भाइयों द्वारा अपनी बहनों की हर हाल में रक्षा करने का
संकल्प लिया जाता है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी
धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। हालांकि
रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है। राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच
का कार्यकलाप नहीं रह गया है। राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की
रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है।
रक्षा-बंधन का पौराणिक प्रसंग
राखी का त्योहार
कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और
दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा
कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी।
उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध
दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस
लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण
पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष
और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।
इतिहास में श्री
कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमें जब कृष्ण
ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने
उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी, और
इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट में द्रौपदी की सहायता
करने का वचन दिया था और उसी के चलते कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के
समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की
भावना रक्षाबन्धन के पर्व में यहीं से प्रारम्भ हुई।
रक्षा-बंधन का ऐतिहासिक प्रसंग
राजपूत जब लड़ाई
पर जाते थे तब महिलाएँ उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ-साथ हाथ में रेशमी
धागा भी बाँधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हें विजयश्री के साथ वापस ले
आयेगा। राखी के साथ एक और प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुई है।
कहते हैं, मेवाड़
की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली।
रानी लड़ऩे में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर रक्षा की
याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर
बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा
की।
एक अन्य
प्रसंगानुसार सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरूवास (पोरस) को
राखी बाँधकर अपना मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन
लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये हुए वचन
का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया।
महाभारत में भी
इस बात का उल्लेख है कि जब ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि
मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूँ तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की
रक्षा के लिये राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि राखी के इस
रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर आपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं। इस समय
द्रौपदी द्वारा कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बाँधने के कई उल्लेख
मिलते हैं।
रक्षा-बंधन का साहित्यिक प्रसंग
अनेक साहित्यिक ग्रन्थ ऐसे हैं जिनमें रक्षाबन्धन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है हरिकृष्ण प्रेमी का ऐतिहासिक नाटक रक्षाबन्धन जिसका 1991 में 18वाँ संस्करण प्रकाशित हो चुका है। मराठी में शिन्दे साम्राज्य के विषय में लिखते हुए रामराव सुभानराव बर्गे ने भी एक नाटक की रचना की जिसका शीर्षक है राखी ऊर्फ रक्षाबन्धन।पचास और साठ के दशक में रक्षाबन्धन हिंदी फ़िल्मों का लोकप्रिय विषय बना रहा। ना सिर्फ़ ‘राखी’ नाम से बल्कि ‘रक्षाबन्धन’ नाम से भी कई फ़िल्में बनायीं गयीं। ‘राखी’ नाम से दो बार फ़िल्म बनी, एक बार सन 1949 में, दूसरी बार सन 1962 में, सन 62 में आई फ़िल्म को ए. भीमसिंह ने बनाया था, कलाकार थे अशोक कुमार, वहीदा रहमान, प्रदीप कुमार और अमिता। इस फ़िल्म में राजेंद्र कृष्ण ने शीर्षक गीत लिखा था- "राखी धागों का त्यौहार"। सन 1972 में एस.एम.सागर ने फ़िल्म बनायी थी ‘राखी और हथकड़ी’ इसमें आर.डी.बर्मन का संगीत था। सन 1976 में राधाकान्त शर्मा ने फ़िल्म बनाई ‘राखी और राइफल’। दारा सिंह के अभिनय वाली यह एक मसाला फ़िल्म थी। इसी तरह से सन 1976 में ही शान्तिलाल सोनी ने सचिन और सारिका को लेकर एक फ़िल्म ‘रक्षाबन्धन’ नाम की भी बनायी थी।
रक्षा-बंधन का सामाजिक प्रसंग
इस दिन बहनें अपने भाई के दायें हाथ पर राखी बाँधकर उसके माथे पर तिलक करती हैं और उसकी दीर्घ आयु की कामना करती हैं। बदले में भाई उनकी रक्षा का वचन देता है। ऐसा माना जाता है कि राखी के रंगबिरंगे धागे भाई-बहन के प्यार के बन्धन को मज़बूत करते है। यह एक ऐसा पावन पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान देता है।रक्षाबन्धन आत्मीयता और स्नेह के बन्धन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर न केवल बहन भाई को ही अपितु अन्य सम्बन्धों में भी रक्षा (या राखी) बाँधने का प्रचलन है। गुरु शिष्य को रक्षासूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरु को। भारत में प्राचीन काल में जब स्नातक अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षासूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो। इसी परम्परा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बाँधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिये परस्पर एक दूसरे को अपने बन्धन में बाँधते हैं।रक्षाबन्धन पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता या एकसूत्रता का सांस्कृतिक उपाय रहा है। विवाह के बाद बहन पराये घर में चली जाती है। इस बहाने प्रतिवर्ष अपने सगे ही नहीं अपितु दूरदराज के रिश्तों के भाइयों तक को उनके घर जाकर राखी बाँधती है और इस प्रकार अपने रिश्तों का नवीनीकरण करती रहती है। दो परिवारों का और कुलों का पारस्परिक योग (मिलन) होता है। समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भी एकसूत्रता के रूप में इस पर्व का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार जो कड़ी टूट गयी है उसे फिर से जागृत किया जा सकता है।
स्वतंत्रता संग्राम में रक्षा-बंधन की भूमिका
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिये भी इस पर्व का सहारा लिया गया। प्रसिद्ध भारतीय लेखक रविन्द्र नाथ टैगोर का मानना था, रक्षा बंधन सिर्फ भाई-बहन के बीच के रिश्ते को मजबूत करने का ही दिन नहीं है, बल्कि इस दिन हमें अपने देशवासियों के साथ भी अपने संबध मजबूत करने चाहिये। यह प्रसिद्ध लेखक बंगाल के विभाजन की बात सुनकर टूट चुके थे, अंग्रेजी सरकार ने अपनी फूट डालो राज करो के नीति के अंतर्गत इस राज्य को बाँट दिया था। हिन्दुओं और मुस्लिमों के बढ़ते टकराव के आधार पर यह बँटवारा किया गया था। यही वह समय था जब रविन्द्र नाथ टैगोर ने हिन्दुओं और मुस्लिमों को एक-दूसरे के करीब लाने के लिए रक्षा बंधन उत्सव की शुरुआत की, उन्होनें दोनों ही धर्मों के लोगों से एक दूसरे को यह पवित्र धागा बाँधने और उनके रक्षा करने के लिए कहा जिससें दोनों धर्मों के लोगों के बीच संबंध प्रगाढ़ हो सके।पश्चिम बंगाल में अभी भी लोग एकता और सामंजस्य को बढ़ावा देने के लिए अपने दोस्तो और पड़ोसियो को राखी बांधते है।
रक्षा-बंधन पर
सरकारी प्रबंध
भारत सरकार के डाक-तार विभाग द्वारा इस अवसर पर दस रुपए वाले आकर्षक लिफाफों की बिक्री की जाती हैं। लिफाफे की कीमत 5 रुपए और 5 रुपए डाक का शुल्क। इसमें राखी के त्योहार पर बहनें, भाई को मात्र पाँच रुपये में एक साथ तीन-चार राखियाँ तक भेज सकती हैं। डाक विभाग की ओर से बहनों को दिये इस तोहफे के तहत 50 ग्राम वजन तक राखी का लिफाफा मात्र पाँच रुपये में भेजा जा सकता है जबकि सामान्य 20 ग्राम के लिफाफे में एक ही राखी भेजी जा सकती है। यह सुविधा रक्षाबन्धन तक ही उपलब्ध रहती है। रक्षाबन्धन के अवसर पर बरसात के मौसम का ध्यान रखते हुए डाक-तार विभाग ने 2007 से बारिश से ख़राब न होने वाले वाटरप्रूफ लिफाफे भी उपलब्ध कराये हैं। ये लिफाफे अन्य लिफाफों से भिन्न हैं। इसका आकार और डिजाइन भी अलग है जिसके कारण राखी इसमें ज्यादा सुरक्षित रहती है।सरकार इस अवसर पर लड़कियों और महिलाओं को निःशुल्क यात्रा का प्रावधान भी करवाती है। जिससे बहने बिना कुछ खर्च किए ही अपने भाइयों को राखी बांधने उनके घर जा सकती हैं। यह सुविधा भी रक्षाबन्धन तक ही उपलब्ध रहती है।
राखी और आधुनिक तकनिकी माध्यम
आज के आधुनिक तकनीकी युग एवं सूचना सम्प्रेषण युग का प्रभाव राखी जैसे त्योहार पर भी पड़ा है। बहुत सारे भारतीय आजकल विदेश में रहते हैं एवं उनके परिवार वाले (भाई एवं बहन) अभी भी भारत या अन्य देशों में हैं। इण्टरनेट के आने के बाद कई सारी ई-कॉमर्स साइट खुल गयी हैं, जो ऑनलाइन आर्डर लेकर राखी दिये गये पते पर पहुँचाती है। इस तरह आज के आधुनिक विकास के कारण दूर-दराज़ में रहने वाले भाई-बहन जो राखी पर मिल नहीं सकते, आधुनिक तरीकों से एक दूसरे को देख और सुन कर इस पर्व को सहर्ष मनाते हैं।आज यह त्योहार हमारी संस्कृति की पहचान है और हर भारतवासी को इस त्योहार पर गर्व है। आज कई भाइयों की कलाई पर राखी सिर्फ इसलिए नहीं बंध पाती क्योंकि उनकी बहनों को उनके माता-पिता ने इस दुनिया में आने ही नहीं दिया। यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि जिस देश में कन्या-पूजन का विधान शास्त्रों में है वहीं कन्या-भ्रूण हत्या के मामले सामने आते हैं। यह त्योहार हमें यह भी याद दिलाता है कि बहनें हमारे जीवन में कितना महत्व रखती हैं।भाइयों और बहनों के लिए रक्षा बंधन का एक विशेष महत्व है। यह त्योहार सिर्फ सामान्य लोगों द्वारा ही नहीं मनाया जाता है, बल्कि इसे देवी-देवताओं द्वारा भी भाई-बहन के इस पवित्र रिश्ते को कायम रखने के लिए मनाया जाता है।
राखी का
भाईयों-बहनों के लिए एक खास महत्व है। इनमें से कई सारे भाई-बहन एक-दूसरे से
व्यावसायिक और व्यक्तिगत कारणों से मिल नहीं पाते, लेकिन इस विशेष
अवसर पर वह एक-दूसरे के लिए निश्चित रुप से समय निकालकर इस पवित्र पर्व को मनाते
हैं, जो कि इसकी महत्ता को दर्शाता है। हमें इस महान और पवित्र त्योहार के
आदर्श की रक्षा करते हुए इसे नैतिक भावों के साथ खुशी-खुशी मनाना चाहिए।
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